एक समयकी बात है भगवान शिव कैलाश पर्वत पर अपनी तप साधना में लीन थे. होली का समय नजदीक था तभी अचानक भोलेनाथ को माता पार्वती के साथ होली खेलने की तीव्र लाल सा उठी लेकिन माता पार्वती अपने मायके गई हुई थी भोलेनाथ शीघ्र ही माता पार्वती के पासपहुंचना चाहते थे. वह तुरंत अपनी साधना से उठे और बिना नंदी और शिवगणों के ही अपने ससुराल जाने लगे, कुछ समय बाद भोलेनाथ अपनी ससुराल पहुंच गए माता पार्वती और उनका परिवार भोलेनाथ को अचानक इस अवस्था में अपने सामने देखकर चौंक गया. पहले तो भोले नाथ की उनके ससुराल में खूब खातेदारी हुई इसके बाद माता पार्वती भोलेनाथ को अपने साथ अपने कक्ष में ले गई और उनसे पूछने लगी स्वामी आप तो अपनी साधना में लीन थे, फिर अचानक बिना कुछ बताए आप यहां??? माता पार्वती की यह बात सुन भोलेनाथ बोले पार्वती मैं अपनी साधना में लीन था लेकिन मुझे अचानक ही तुम्हारे संग होली खेलने की इच्छा हुई तो मैं बिना देर किए तुम्हारे पास आ गया भोलेनाथ के इस भोलेपन पे माता
को भोलेनाथ की जिद स्वीकार करनी पड़ी. माता पार्वती भोलेनाथ से पूछने लगी स्वामी आपका मन मेरे संग होली खेलने का है लेकिन क्या आप होली खेलने के लिए अमीर गुला लेकरआये हैं?? माता पार्वती के इस प्रश्न को सुनकर भोलेनाथ ने एक पोटली निकाली और उस पोटली को माता के आगे कर दिया उसे पोटली में भस्म थी यह देखकर माता डर गई और भोलेनाथ से बोली स्वामी आप होली का पर्व भी इस भस्म से मनाएंगे होली का पर्व तो अबीर और गुलाल से मनाया जाता है परंतु आप तो भस्म लेकर आ गए माता पार्वती की यह बात सुनकर शिव जी बोले पार्वती इस भस्म में क्या अनुचित है यह भस्म ही तो है जो सबसे पवित्र है दुनिया की सभी रंग सभी वस्तु धन दौलत आखिरी में सब इस भस्म में ही मिल जाता है
यह भस्म ही सत्य है मैं आपके साथ इसी भस्म से होली खेलूंगा भगवान शिव की यह बात सुन माता पार्वती भस्म से होली खेलने के लिए मान गई और वो अपनी ओर से अमीर और गुलाल ले आई इसके बाद भोलेनाथ और माता पार्वती ने भस्म और रंगों से एक दिव्या होली खेली उन्हें होली खेलता देख आकाश से सभी देवता उन पर पुष्पों की वर्षा करने लगे माता
पार्वती भगवान शंकर पर रंगों की वर्षा करती और उन पर गुलाल और अबीर फेंकती जिससे भगवान शंकर के गले में लिपटे सर्प घबराकर फुस्कारने लगे उनकी फुस्कार से भगवान शिव के माथे पर विराजमान चंद्र से अमृत की धारा बहाने लगी जो सीधे भोलेनाथ के बाघम्बर पर जा गिरी जिस कारण बाघम्बर जीवित अब बन गया और वह भगवान के देह सेउतरकर जोर-ज़ोर से दहाड़ने लगा बाघंबर के देह से उतरने के कारण भगवान भोलेनाथ दिगंबर हो गए भगवान भोलेनाथ को दिगंबर अवस्था में देख माता पार्वती अपनी हंसी नारोक पाई और जोर जोर से हंसने लगी माता को ऐसे हंसता देख भगवान शंकर को लज्जा ए गईऔर उन्होंने फिर से उसे जिंदा बाग को बाघंबर में बदल लिया और अपने देह पर ओढ़लिया . इस अलौकिक दिवस को देव होली के रूप में फागुन मास में श्रद्धा भाव से मनाया जाता है जय भोलेनाथ जय माता पार्वती
पार्वती हंसने लगी और बोली भोलेनाथ आप भी बड़े भोले हैं होली का पर्व आज नहीं हैअभी होली आने में समय है भोलेनाथ फिर बोले हां हां पार्वती मैं भी जानता हूं की होलीके पर्व में अभी कुछ समय शेष है परंतु आपके साथ होली खेलने की इच्छा मुझे अभी होरही है मुझे आपके साथ आज ही होली खेलनी है माता पार्वती ने भोलेनाथ को खूब रोकने काप्रयास किया लेकिन भोलेनाथ एक बच्चे की भांति जिद पे अड़ गए, अंत में माता पार्वती