होली त्योहार जिसे हमारे देश में धूमधाम से मनाया जाता है होली के त्योहार का राधा कृष्ण के साथ गहरा रिश्ता है ..आज आप राधा-कृष्ण की होली से जुड़ी एक सच्ची घटना सुनिये. वृन्दावन में एक संत रहते थे उनके एक भक्त थे जिनका नाम धनीराम था वे बहुत बड़े व्यापारी थे, वो अपने काम के सिलसिले में दूर नगरों की यात्रा करते थे इसी तरह एक बार उन्हें कन्नौज जाना पड़ा कन्नौज के इत्र की उत्पादन के लिए मशहूर है .यहां के इतर बहुत ही खुशबूदार होते हैं धनीराम ने एक खुशबुदार इत्र की शीशी खरीदी जिसे वह संत को भेंट करना
कारण मुझ पर भी श्री कृष्ण की कृपा दृष्टि हुई धनीराम की आंखें आश्चर्य से फैल गई उन्हें संत की कोई बात समझ नहीं आ रही थी संत ने उनके चेहरे पर छाए भाव पढ़िए उन्होंने कहा तुम ही मेरी बात का भरोसा नहीं हो रहा है तुम जाकर मथुरा के जितने भी राधा-कृष्ण के मंदिर है उनके दर्शन करो फिर आकर मुझसे मिलना . धनीराम संत की बात मानकर सभी मंदिरों में गए जिस मंदिर में भी वह जाते वहां कृष्ण की मूर्ति से अपनी इत्र की खुशबू आती दर्शन कर वह भाव विभोर हो गए और संत की कुटिया में आकर उनके पैरों में गिर गए भावुकता के कारण उनकी आंखों से अश्रुधारा बह रही थी संत भले ही शरीर से हमारे जैसे दिखते हैं पर उनका स्थान हम से ऊंचा होता है इश्वर भक्ति में रमे रहने के कारण उन्हें हर जगह भगवान के दर्शन होते हैं.. जय जय श्री राधे ….
चाहते थे काम पूरा होने पर वह अपने नगर लौट आए पर चप्पू संत की कुटिया में पहुंचे तो कुटिया का द्वार बंद था लोगों से पूछने पर पता लगा कि संत यमुना नदी के तट पर गए हैं वहां विशेष स्नान करेंगे तत्पश्चात ध्यान में बैठेंगे धनीराम जल्दी से जल्दी इत्र की शीशी उनको देना चाहते थे इसलिए वह तुरंत यमुना के घाट पर चल दिए वहां पहुंचने पर उन्होंने देखा कि संत का शरीर कमर तक पानी में डूबा हुआ है और नदी में किसी वस्तु को देखकर हौले-हौले मुस्कुरा रहे हैं धनीराम ने संत के पास जाकर उन्हें प्रणाम किया और बोले मैं आपके लिए कन्नौज से इत्र की शीशी लाया हूं संत ने कहा लाओ इसे मुझे दे दो संत ने इत्र की शीशी लेकर पूरी शीशी यमुना के जल में उड़ेलते और
मंद-मंद मुस्कुराने लगे उनकी यह हरकत देखकर धनीराम दुखी हो गए उन्होंने मन में सोचा महात्मा ने उपयोग किए बिना ही यमुना में इतना कीमती इत्र यूँ ही बहा दिया वे उदास मन से घर लौट गए कुछ दिनों बाद जब उनका मन शांत हुआ था तो वह संत की झोपड़ी में गए , संत उस समय आंखें बंद करके बैठे थे और एक भजन गुनगुना रहे थे सेठ की आने की आहट से उनका गुनगुनाना रुक गया उन्होंने आंखें खोलकर देखा तो सेठ दरवाजे पर खड़े थे उन्होंने खुश होकर सेठ को अंदर बुलाया और कहा तुम्हारे द्वारा लाये गए इत्रने बहुत बड़ा काम कर दिया सेठ ने आश्चर्य से संत की ओर देखा और कहा महाराज मैं कुछ समझा नहीं तब संत बोले ..जब तुम सब यमुना के तट पर आए थे
राधा और कृष्ण वहां होली खेल रहे थे राधा ने कृष्ण पर रंग डालने के लिए जैसे ही बर्तन से पिचकारी में रंग भरना शुरू किया उसी समय तुम्हारा दिया हुआ इत्र मैंने बर्तन में डाल दिया और राधा रानी ने रंग के साथ इतर भी पिचकारी में भर लिया और श्रीकृष्ण पर पिचकारी छोड़ दी भगवान कृष्ण का शरीर इत्र की खुशबू से महक उठा तुम्हारे लाये हुए इत्र ने राधा-कृष्ण की होली को और भी रंगीन बना दिया कृष्ण खुशी से झूम उठे उनकी खुशबूदार रंगीली होली यादगार बन गई इस